- - Ashutosh Rana Kalyug kavita | कलयुग जब खड़ा हो गया परमभ्रम के सामने

Header ad

Ashutosh Rana Kalyug kavita | कलयुग जब खड़ा हो गया परमभ्रम के सामने


आशुतोष राणा की हिंदी मे कविता - कलयुग तू एक कलपना है 

यह कविता आशुतोष राणा द्वारा एक टीवी चैनल पर पहली बार सुनाई गयी थी। हिंदी भाषा का इसमे बहुत ही अच्छा उपयोग किया गया है।  इस कविता मे आशुतोष राणा जी ने कलि और परम भृह्म परमात्मा जो की कल्कि के रूप मे सबके सामने आएंगे उनके बिच क्या बात होती है , उसे बताया गया है । 


Poetry by Ashutosh Rana- "Kalyug tu ek kalpana hai"


कलयुग तू एक कलपना है 
अब अशुद्धि के लिए मैं शुद्ध होना चाहता हूँ,
अब कुबुद्धी को लिए मैं बुद्ध होना चाहता हूँ.
चाहता हूँ इस जगत में शांति चारों ओर हो,
इस जगत के प्रेम पर मैं क्रुद्ध होना चाहता हूँ.
चाहता हूँ तोड़ देना सत्य की सारी दीवारें,
चाहता हूँ मोड़ देना शांति की सारी गुहारें.
चाहता हूँ इस धरा पर द्वेष फूले और फले,
चाहता हूँ इस जगत के हर हृदय में छल पले.

आशुतोष राणा की हिंदी मे कविता - कलयुग तू एक कलपना है 
Poetry by Ashutosh Rana- "Kalyug tu ek kalpana hai"
Poetry by Ashutosh Rana- "Kalyug tu ek kalpana hai"

मैं नहीं रावण की तुम आओ और मुझको मार दो,
मैं नहीं वह कंस जिसकी बाँह तुम उखाड़ दो.
मैं जगत का हूँ अधिष्ठाता मुझे पहचान लो,
हर हृदय में- मैं बसा हूँ बात तुम ये जान लो.
अब तुम्हारे भक्त भी मेरी पकड़ में आ गए हैं,
अब तुम्हारे संतजन बेहद अकड़ में आ गए हैं.
मारना है मुझको तो, पहले इन्हें तुम मार दो,
युद्ध करना चाहो तो, पहले इन्हीं से रार लो.
ये तुम्हारे भक्त ही अब घुर विरोधी हो गए हैं,
ये तुम्हारे संतजन अब विकट क्रोधी हो गए है.
मैं नहीं बस का तुम्हारे राम,कृष्ण और बुद्ध का,
मैं बनूँगा नाश का कारण-तुम्हारे युद्ध का.
अब नहीं मैं ग़लतियाँ वैसी करूँ जो कर चुका,
रावण बड़ा ही वीर था वो कब का छल से मर चुका.
तुमने मारा कंस को कुश्ती में सबके सामने,
मैं करूँगा हत तुम्हें बस्ती में सबके सामने.


कंस- रावण- दुर्योधन तुमको नहीं पहचानते थे,
वे निरे ही मूर्ख थे बस ज़िद पकड़ना जानते थे.
मैं नहीं ऐसा जो छोटी बात पर अड़ जाऊँगा,
मैं बड़ा होशियार ख़ोटी बात कर बढ़ जाऊँगा.
अब नहीं मैं जीतता, दुनिया किसी भी देश को,
अब हड़प लेता हूँ मैं, इन मानवों के वेश को.

आशुतोष राणा की हिंदी मे कविता - कलयुग तू एक कलपना है 

मैंने सुना था तुम इन्हीं की देह में हो वास करते,
धर्म, कर्म, पाठ-पूजा और तुम उपवास करते.
तुम इन्हीं की आत्मा तन मन सहारे बढ़ रहे थे,
तुम इन्हीं को तारने मुझसे भी आकर लड़ रहे थे.
अब मनुज की आत्मा और मन में मेरा वास है.
अब मनुज के तन का हर इक रोम मेरा दास है.
काटना चाहो मुझे तो पहले इनको काट दो,
नष्ट करना है मुझे तो पहले इनका नाश हो.
तुम बहुत ही सत्यवादी, धर्मरक्षक, शिष्ट थे,
इस कथित मानव की आशा, तुम ही केवल इष्ट थे.
अब बचो अपने ही भक्तों से, सम्हा लो जान को,
बन सके तो तुम बचा लो अपने गौरव- मान को.
अब नहीं मैं- रूप धरके, सज-सँवर के घूमता हूँ,
अब नहीं मैं छल कपट को सर पे रख के घूमता हूँ.
अब नहीं हैं निंदनीय चोरी डकैती और हरण,
अब हुए अभिनंदनीय सब झूठ हत्या और दमन.
मैं कलि हूँ- आचरण मेरे तुरत धारण करो,
अन्यथा अपकीर्ति कुंठा के उचित कारण बनो


Video Credit: Sahitya Tak



महा मौन का मुखर घोष

तुम बहुत बोले मे चुप चाप सुनता रहा
तेरे हृदय की वेदना मैं मन ही मन गुणता रहा
है बहुत सा क्रोध तेरे मन मे सत्य के वास्ते
चाहता तू बंद करना है सभी के रास्ते
मुझ को चुनौती देके तू भगवान होना चाहता है
अज्ञान का पुतला है तू और ज्ञान होना चाहता है
तू समय का मात्र प्रतिवाद और विवाद है
तू स्वयं ही ब्रहम और उसका नाद होना चाहता है
तू विकट भीषण हलाहल है समय की चाल का
तू स्वयं अब विश्व का गोपाल होना चाहता है
तू स्वयं को कंस और रावण से भी उत्तम मानता है
तू स्वयं को विकट शक्ति शाली योद्धा जानता है

आशुतोष राणा की हिंदी मे कविता - कलयुग तू एक कलपना है 
Poetry by Ashutosh Rana- "Kalyug tu ek kalpana hai"
Poetry by Ashutosh Rana- "Kalyug tu ek kalpana hai"

तू नही कुछ भी कली इस सत्य को तू जान ले
और कुछ भी नही है वश मे तेरे बात मेरी जान ले

जो भी तू बीत गया ऐसा कल है या आने वाले कल का छल
मैं वर्तमान का महाराग, मै सदा उपस्थित पुलकित कल
तू बीते कल ही ग्लानि है या आने वाली चिंता है
मैं वर्तमान आनंदित छन, ये विश्व मुझी मे खिलता है
तू कल की बाते करता है, मैं कल्कि बनके आता हु
मैं तेरे कल की बातों को मैं कल्कि आज मिटाता हूं
तू कली कपट का ताला है, मैं कल्कि उसकी ताली हूं
तू शंका की महाधुंध, मैं समाधान की लाली हूं

कल का मतलब जो बीत गया, कल का मतलब जो आएगा
कल का मतलब जो है मशीन, कल वो जो दुख पहुचायेगा
कल का मतलब जो ग्लानि है, कल का मतलब जो चिंता है
कल का मतलब जो पास नही, कल कभी किसी को मिलता है

कल तो बस एक खुमारी है, कल बीत रही बीमारी है
कल मनुज हृदय की प्रत्यासा, कल तो उसकी बेकरी है
कल वो जिसका अस्तित्व नहीं, कल वो जिसका वक्तित्व नही
कलयुग तो एक कल्पना है, इसमें जीवन का सत्य नही

Poetry by Ashutosh Rana- "Kalyug tu ek kalpana hai"

कली अभी तू कच्चा है, तू वीर नही बस बच्चा है
चल तुझको मैं आज बताता हूं, मैं विश्व रूप दिखलाता हूं
मैं सत्यसनातन आदि पुरुष, मैं सत्य सनातन शक्ति हूं
मैं अखिल विश्व की श्रद्धा हूं, मैं मनुज हृदय की भक्ति हूं
जब सत्य जागता है मुझमें, मै सतयुग नाम धारता हूं
जब राम प्रकट हो जाते है, मैं त्रेता युग कहलाता हूं
जब न्याय धर्म की इच्छा हो, द्वापर युग हो जाता हूं
जब काम, क्रोध, मद, लोभ उठे, तब कली काल कहलाता हूं
आनंद मग्न जब होता हूं, शिव चंगू कहलाता हूं
जब प्रलय तांडव नृत्य करू, तब महाकाल हो जाता हूं
मैं ही महादेव की डमरू, मैं ही वंशीधर की वंशी
और मैं ही परशुराम का फरसा, मै ही श्री राम का बाण
तू रावण का कोलाहल है और कंस का हाहाकार
मैं सृष्टि का विजय नाद हूं, और मनुज हृदय की जय जयकार

मैं भी अनंग, तू भी अनंग
तू संग संग, मैं अंग अंग
तू है अरूप, मै दिव्य रूप
तू कल है कपट का है एक रूप
तू खंड खंड, मैं हूं अखंड
मैं शांति रूप, मैं हूं प्रचंड
मैं ही साकार, मैं ही नकार
मैं धुआधार, मैं ही मकार
मैं ही पुकार , मैं जीतकर
मैं नमस्कार, मैं चमत्कार
बेरी का बैर, प्रेमी की प्रीत
निर्बल का मान, मैं उसकी जीत
मैं हूं ध्यान, मैं ही अजान
ये आन बान सारा जहां

Poetry by Ashutosh Rana- "Kalyug tu ek kalpana hai"

और मैं ही खटपट , मैं ही झटपट
मैं ही मंदिर मस्जिद का पट
मैं ही इस घट, मैं ही उस घट
मैं ही पनहारी, मैं ही पनघट
मैं ही अटकन, मैं ही भटकन
मैं ही इस जीवन की चटकन
मैं अर्धवन, मैं धर्मवान,
मैं मोक्षवान, मैं कर्मवान,
मैं ज्ञानवान , विज्ञानवान,
मैं दयावान, कृपानिधान

कर्म भी मैं हूं, धर्म भी मैं हूं
जीवन का सब धर्म भी मैं हूं
जीवन के इस पार भी मैं हूं
जीवन के उस पार भी मैं हूं
जीवन का उद्देश भी मैं हूं
जीवन का उपकार भी मैं हूं
आह भी मैं हूं वाह भी मैं हूं
इस जीवन की चाह भी मैं हूं
तन भी मैं हूं, मन भी मैं हूं
इस जीवन का धन भी मैं है
आन भी मैं हूं, मान भी मैं हूं
इस जीवन की शान भी मैं हूं
ज्ञान भी मैं ही , दान भी मैं हूं
जीवन का अभिमान भी मैं हूं
जीत भी मैं हूं, हार भी मैं हूं
इस जीवन का सार भी मैं हूं
संत भी मैं हूं, अंत भी मैं हूं
और आदि और अनंत भी मैं हूं

Poetry by Ashutosh Rana- "Kalyug tu ek kalpana hai"

भूख प्यास और आस भी मैं हूं
जीवन का विश्वास भी मैं हूं
तू प्यार ना मुझसे पाएगा
तू तनिक नही टिक पाएगा
तू सत धर्म के पैरो से , भूमि पर कुचला जायेगा

यह देख कली का दिल डोला
यह देख कली विचलित बोला
मैं धाम धामा धाम अधम नीच
मैं पड़ा हुआ कीचड़ के बीच
मैं विकट हटी मिथ्या चारी
मैं पतित पुरातन विपचारी
है दयावान तुम पाप हरो
मेरे कसूर को माफ करो
और अंतस की कालिख को है स्वामी
तुम धीरे धीरे साफ करो

 ********  ********   *********  *********

STAY CONNECTED WITH YOUR LOVED ONES,
YES!!YOU GOT IT RIGHT, WITH US ;)

For Any Query or Suggestion, Please Contact us : famoushayari2022@gmail.com
                                                                                    preritjaingodha@gmail.com





Post a Comment

1 Comments