★Poetry By Shubham Shyam | शुभम श्याम की कविताएं ★
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" गिर जाना मेरा अंत नहीं ,गिर जाना मेरा अंत नहीं "
परमे परवाज़ की शक्ति है , मन में आगाज़ की शक्ति है ,
वो चोच में तिनका डालें , डाली पर दो आँखे तकती है ,
वो परख रही है , तूफ़ा के बाज़ू में कितनी ताक़त है ,
वो देख रही है आसमान में नाम मात्र की राहत है ,
पर लगी साँस जब फूलने तो तूफ़ा ने मौका लपक लिया ,
आसमा की उमीदो को ला धरती पर पटक दिया ,
पर झाड़ रही है धूल परो से , रगो में गज़ब रवानी है ,
चोट खाने के बावजूद उड़ने की ललख पुरानी है ,
ग़लत करूंगा साबित सबको , यहां कोई अरिहंत नहीं ,
गिर जाना मेरा अंत नहीं ,गिर जाना मेरा अंत नहीं |
वो चोच में तिनका डालें , डाली पर दो आँखे तकती है ,
वो परख रही है , तूफ़ा के बाज़ू में कितनी ताक़त है ,
वो देख रही है आसमान में नाम मात्र की राहत है ,
पर लगी साँस जब फूलने तो तूफ़ा ने मौका लपक लिया ,
आसमा की उमीदो को ला धरती पर पटक दिया ,
पर झाड़ रही है धूल परो से , रगो में गज़ब रवानी है ,
चोट खाने के बावजूद उड़ने की ललख पुरानी है ,
ग़लत करूंगा साबित सबको , यहां कोई अरिहंत नहीं ,
गिर जाना मेरा अंत नहीं ,गिर जाना मेरा अंत नहीं |
मुखड़े पर धूल लगी माना , माथा फूटा माना लेकिन ,
गालों पर थप्पड़ खाये है , जबड़ा टूटा माना लेकिन ,
माना के आंते अकड़ गई , पसलियों से लहू निकलता है ,
गिस गया है कंकर में घुटना , मिर्च सलिखे जलता है ,
माना के साँसे उखड़ रही, और धक्का लगता धड़कन से ,
लो मान लिया की काँप गया है , पूर्ण बदन अंतर्मन से ,
पर आँखों से अंगारे , नथनों से तूफ़ा लाऊंगा ,
में गिर गिर कर भी धरती पर , हर रोज़ खड़ा हो जाऊंगा ,
मुठ्ठी में बींच लिया तारा , तुम नगर में ढोल पिटादो जी ,
अँधेरे हो लाख़ घने पर अँधेरे अनन्त नहीं ,
गिर जाना मेरा अंत नहीं , गिर जाना मेरा अंत नहीं |
गालों पर थप्पड़ खाये है , जबड़ा टूटा माना लेकिन ,
माना के आंते अकड़ गई , पसलियों से लहू निकलता है ,
गिस गया है कंकर में घुटना , मिर्च सलिखे जलता है ,
माना के साँसे उखड़ रही, और धक्का लगता धड़कन से ,
लो मान लिया की काँप गया है , पूर्ण बदन अंतर्मन से ,
पर आँखों से अंगारे , नथनों से तूफ़ा लाऊंगा ,
में गिर गिर कर भी धरती पर , हर रोज़ खड़ा हो जाऊंगा ,
मुठ्ठी में बींच लिया तारा , तुम नगर में ढोल पिटादो जी ,
अँधेरे हो लाख़ घने पर अँधेरे अनन्त नहीं ,
गिर जाना मेरा अंत नहीं , गिर जाना मेरा अंत नहीं |
By: Shubham Shyam
Parme parvaaj ki shakti hai, man mai aagaz ki shakti hai
vo choch mai tinka daale, daali par do aankhe takti hai
Vo parakh rahi hai, toofan ke baaju mai kitni taakat hai
vo dekh rahi hai aasman mai naam maatra ki rahat hai
Par lagi saans jab foolne to toofan ne moka lapak liya
aasman ki umeedo ko la dharti par patak diya
Par jhaad rahi hai dhool paro se, rago mai gajab rawani hai,
chot khane ke baawood, uadne ki lalakh purani hai,
Galat karunga saaabit sabko, yahan koi arihant nahi
gir jana mera ant nahi, gir jana mera ant nahi...
Mukhde par dhool lagi mana, matha foota mana lekin
gaalo par thapad khaaye hai, jabda toota mana lekin,
Mana ke aante akad gayi, pasliyon se laho nikalta hai,
Gis gayan hai kankar mai ghutna, mirch salikhe jalta hai,
mana ke saanse ukhad rahi, aur dhakka lagta dhadkan se,
Lo maan liya ki kaanp gaya hai, purn badam antar man se,
Par aankho se angare, nathno se toofa laaunga,
mai gir gir kar bhi dharti par, har roj khada ho jaaunga,
Mutthi mai beench liya tara, tum nagar mai dhool pitado ji,
andhera ho laakh ghane par andhera anant nahi,
Gir jana mera ant nahi, gir jana mera ant nahi...
By: Shubham Shyam
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"हर एक संकट का हल होगा, वोह आज नहीं तो कल होगा"
हर एक संकट का हल होगा, वोह आज नहीं तो कल होगा
माना है अँधेर बहुत, और चारो और नाकामी है
माना थक कर टूट रहे, और सफर अभी दूरगामी है
जीवन की आपा-धापी मे, जीवन का ठिकाना छूट गया माना थक के सपनो का, नींदो मे आना छूट गया
माना की हिम्मत टूट गयी, आँखों मे निराशा छायी है
माना के चाँद पर ग्रहण है, और रात अभी गहरई है
श्री कृष्ण ने साफ़ कहा है की, सिर्फ कर्म तुम्हारा कल होगा
और कर्म अगर सच्चाई है, तो कर्म कहाँ निष्फल होगा
हर एक संकट का हल होगा, वो आज नहीं तो कल होगा।
लोहा जितना तपता है, उतनी ही ताकत भरता है
सोने को जितनी आग लगे, वो उतना प्रखर निखरता है
हीरे पर जितनी धार लगे, वो खूब चमकता है
मिट्टी का बर्तन पकता है, तब धुन पर खूब खनकता है
सूरज जैसा बन ना है, तो सूरज जैसा जलना होगा
नदियों सा आदर पाना है, तो पर्वत छोड़ निकलना होगा
और हम आदम के बेटे है, तो क्यों सोचे राज सरल होगा
कुछ ज्यादा वक़्त लगेगा, पर संघर्ष जरूर सफल होगा
हर एक संकट का हल होगा वो आज नहीं तो कल होगा
By: Shubham Shyam
Har ek sankat ka hal hoga, woh aaj nahi to kal hoga
maana hai andher bahut, or chaaro or naakami hai
Maana thak kar toot rahe, or safar abhi durgami hai
jivan ki aapa dhaapi mai, jeevan ka thikana choot gaya
Maana thak ke sapno ka, neendo mai aana choot gaya
maana ki himmat toot gayi, aankho mai nirsha chaayi hai
Maana ke chaand par grahan hai, or raat abhi gahraai hai
shree krishn ne saaf kaha hai ki,sirf karm tumhara kal hoga
Aur karm agar sachai hai, to karma kahan nishfal hoga
har ek sankat ka hal hoga, vo aaj nahi to kal hoga
Loha jitna tapta hai, utni hi taakat bharta haii
Sone ko jitni aag lage, vo utna prakhar nikharta hai
Heere par jitni dhaar lage, vo utna khoob chamakta hai
Mitti ka bartan pakta hai,tab dhun par khoob khanakta hai
Suraj jesa ban na hai, to suraj jitna jalna hoga
Nadiyon sa aadar paana hai, to parvat chodh nikalna hoga
Aur hum aadam ke bete hai, kyu soch rahe raaj saral hoga
Kuch jyaada waqt lagega, par sangharsh jaroor safal hoga
Har ek sankat ka hal hoga, vo aaj nahi to kal hoga
By: Shubham Shyam
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3 Comments
I loved this poem..Just fabulous.. I also write some poems..Please go through them and let me know how can I improve ..
ReplyDeleteHttps://nitin khandelwal blog.wordpress.com
Apologise for autocorrect - blog is nitinkhandelwalblog.wordpress.com
ReplyDeletesimply breathtaking
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